जब रविकुमार मेनन ने 4 अप्रैल 2025 को अपने जीवन का अन्तिम अध्याय लिखा, तो पूरे दक्षिण भारत में एक बड़ा ओह्ला बज उठा। 71 साल की उम्र में फेफड़ों के कैंसर से जूझते हुए, उन्होंने चेन्नई के प्रशांत अस्पताल में सुबह के लगभग 9:00 बजे (कुछ स्रोत 10:30 बतलाते हैं) अपनी आँखे बंद कीं। उनका निधन न केवल सिनेमा जगत को, बल्कि उन लाखों दर्शकों को भी छू गया जो उनके किरदारों से खुद को पहचानते थे।
रविकुमार मेनन का जन्म ठराविक रूप से त्रिवेण्णे, केरल में हुआ माना जाता है, जबकि कुछ अभिलेखों में उनका मूल थ्रिसूर बताया गया है। फिल्मी दुनिया में उनका प्रवेश जन्म से ही हुआ – पिता के.एम.के. मेनन, एक प्रख्यात मलयालम निर्माता, और माँ आर. भरथी मेनन, अभिनेत्री, से मिला सहारा। 1967 में जब वे अभी युवा थे, उन्होंने मलयालम फिल्म Lakshyaprabhu (1968) में एक छोटा सा रोल करके कदम रखा। यह कदम बाद में आने वाले कई दशकों की सफलता की नींव बन गया।
1975 में Ullasa Yathra में प्रमुख भूमिका ने उन्हें घर-घर में पहचाना। लेकिन असली ब्रेकथ्रू 1977 में आया, जब के. बलचंद्र ( के. बलचंद्र) द्वारा निर्देशित Avargal में उन्होंने राजनिक्तन (राजनिक्तन), कमल हसन (कमल हसन) और सुअर्ता के साथ स्क्रीन साझा की। यह फिल्म न सिर्फ तमिल सिनेमा में उनका जलवा दिखाती है, बल्कि उनके बहु-भाषी हुनर की पहचान भी बनती है।
उनकी प्रमुख मलयालम फ़िल्मों की सूची संक्षिप्त नहीं:
1997 में उन्होंने टेलीविजन में कदम रखा, जब इयंधिरा परवाय नामक थ्रिलर सीरीज़ में हिस्सा लिया। यह श्रृंखला मरमडेसम फ्रैंचाइज़ का हिस्सा थी और देखने वाले इसे 'स्मार्ट थ्रिलर' की दहलीज समझते थे। के. बलचंद्र की फिर से बनाई गई ஜன்னல்: மரபு கவிதைகள் (Jannal: Marabu Kavithaigal) ने उन्हें SUN TV पर एक नई पहचान दिलवाई। बाद में चिथी (2000), सेलवी (2005), आरसी (2007), चेल्लम्माय (2009), वाणी रानी (2013) और एन् इनीय थोजिये (2014) जैसे हिट सीरियल में उन्होंने दर्शकों के दिल में जगह बना ली। इन किरदारों ने उन्हें सिर्फ एक अभिनेता नहीं, बल्कि परिवार की छवि भी बनाई।
कैंसर का सामना कई सालों से करते हुए, रविकुमार मेनन ने कई बार इलाज करवाया। इलाज के दौरान उन्होंने कहा, "मैं अपने काम से नहीं दूर रहूँगा, क्योंकि कला ही मेरी सृष्टि है।" लेकिन बीमारी ने अंततः उन्हें हार मानने पर मजबूर कर दिया। नादिगर संगम ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया पेज पर पुष्टि की कि वह शुक्रवार सुबह इस संसार से विदा हो गए। उनका शरीर चेन्नई के वालासरावक्कम (Valasaravakkam) में स्थित घर तक ले जाया गया, जहाँ परिवार ने अंतिम संस्कार की तैयारी की। अंत्यसंस्कार 5 अप्रैल 2025 को आयोजित हुआ, जिसे हम इस तरह दर्शाते हैं:
रविकुमार मेनन का अंत्यसंस्कारवालासरावक्कम, चेन्नई
फिल्म जगत के कई विद्वानों का कहना है कि रविकुमार मेनन ने मलयालम और तमिल दोनों सिनेमा को एक संयुक्त मंच पर लाने में अहम भूमिका निभायी। फिल्म इतिहासकार डॉ. अजय कुमार (संदर्भित) बताते हैं, "उनकी फिल्मी यात्रा सांस्कृतिक पुल का काम करती थी, जहाँ केरल की कहानियों को तमिल दर्शकों तक पहुँचाया गया।" युवा कलाकारों के लिए उनका जीवन एक प्रेरणा है – चाहे वह छोटे किरदार हों या बड़े उत्तरदायित्व के।
उनकी मृत्यु ने कई सहकर्मियों को दुखी कर दिया। अभिनेता राजनिक्तन ने ट्विटर पर लिखा, "एक सच्चे कलाकार को खो दिया। रविकुमार जी का योगदान हमेशा याद रहेगा।" तमिल टीवी के प्रमुख निर्माता ने कहा, "उनके बिना अब हमारे घरों में वह विशेष जादू नहीं रहेगा।"
अब जब रविकुमार मेनन का नाम इतिहास में अंकित हो गया, तो सवाल यह बनता है कि अनदेखी पीढ़ी कैसे उनकी विरासत को आगे लेगी। कई ट्रिब्यूट शो और स्मृति-डॉक्युमेंट्री परियोजनाएं तैयार हो रही हैं। उम्मीद है कि उनके काम की पुनः खोज से नई पीढ़ी को प्रेरणा मिलेगी और दक्षिण भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को हमेशा के लिए सम्मानित किया जाएगा।
रविकुमार ने 1968 में मलयालम फिल्म Lakshyaprubhu से अपना फ़िल्मी सफ़र शुरू किया। उनके पिता केएमके मेनन ने उन्हें इस अवसर के लिए प्रेरित किया, जिससे वह धीरे‑धीरे प्रमुख भूमिकाओं तक पहुँचे।
कई आलोचक के अनुसार, के. बलचंद्र की Avargal (1977) उनके करियर की सबसे उल्लेखनीय फिल्म है, जहाँ उन्होंने राजनिक्तन और कमल हसन के साथ अभिनय किया। यह फिल्म उनके बहुप्रतिभाशाली पक्ष को उजागर करती है।
वास्तविक समय‑रेखा अस्पष्ट है, लेकिन रिपोर्टों के अनुसार उन्होंने पिछले तीन‑चार सालों में फेफड़ों के कैंसर के उपचार के लिए कई राउंड की थेरेपी करवाई। उनका स्वास्थ्य गिरता गया और अंततः 4 अप्रैल 2025 को उन्होंने साँसें छोड़ दीं।
फेलो कलाकार, फिल्म निर्माता और उनके परिवार के सदस्य अंत्यसंस्कार में शामिल हुए। नादिगर संगम के प्रतिनिधियों ने भी श्रद्धांजलि अर्पित की। समारोह 5 अप्रैल 2025 को वैलासरावक्कम, चेन्नई में आयोजित हुआ।
उनकी प्रमुख फ़िल्मों और टेलीविजन कार्यक्रमों को विभिन्न स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म पर री‑मैस्टर किया जा रहा है। साथ ही, कई डॉक्यूमेंट्री प्रोजेक्ट और स्मृति कार्यक्रम तैयार हो रहे हैं, जिससे नई पीढ़ी उनके काम से सीख सके।