
स्टॉक स्प्लिट का मतलब है कि कंपनी अपने मौजूदा शेयरों को छोटे‑छोटे हिस्सों में बाँट देती है। अगर आपके पास 1 शेयर है और कंपनी 2‑for‑1 स्प्लिट करती है, तो आपका 1 शेयर दो में बदल जाएगा, लेकिन कुल वॅल्यू वही रहेगी। इस तरह शेयर की कीमत कम हो जाती है, लेकिन आपका निवेश का मूलभूत मूल्य नहीं बदलता।
सबसे आम दो प्रकार होते हैं – फॉरवर्ड स्प्लिट और रिवर्स स्प्लिट। फॉरवर्ड स्प्लिट में शेयर की संख्या बढ़ती है, जैसे 3‑for‑1, 5‑for‑1 आदि। रिवर्स स्प्लिट में शेयर की संख्या घटती है, जैसे 1‑for‑5, जहाँ 5 पुराने शेयर मिलकर 1 नया बनाते हैं। फॉरवर्ड स्प्लिट का मकसद शेयर को सस्ता बनाकर ज्यादा लोगों को खरीदने देना है, जबकि रिवर्स स्प्लिट तब किया जाता है जब शेयर की कीमत बहुत कम हो और कंपनी उसे एक स्तर पर ले जाना चाहती है।
स्प्लिट खुद से आपके पोर्टफ़ोलियो को नहीं बदलता, लेकिन इसका सायकोलॉजिकल असर बड़ा होता है। कम कीमत वाले शेयर अधिक आकर्षक लगते हैं, इसलिए छोटे निवेशकों का भी एंट्री आसान हो जाता है। इससे ट्रेडिंग वॉल्यूम बढ़ सकता है और कंपनी की लिक्विडिटी सुधरती है। दूसरी तरफ, रिवर्स स्प्लिट से शेयर की कीमत ऊँची दिखती है, जिससे बड़े संस्थागत निवेशकों का भरोसा बढ़ सकता है।
ध्यान रखें, स्प्लिट के बाद शेयर की कीमत फिर से बाजार में तय होती है, इसलिए यह गारंटी नहीं देता कि कीमत बढ़ेगी या गिरेगी। आप को केवल कीमत में परिवर्तन ही नहीं, बल्कि कंपनी की वित्तीय स्थिति, बिज़नेस मॉडल और मार्केट ट्रेंड देखना चाहिए।
अगर आप स्प्लिट के बाद शेयर खरीदना चाहते हैं, तो कुछ बेसिक नियम फॉलो करें: पहले कंपनी के रेज़ल्ट, प्रॉफिट और भविष्य की योजना देखें। दूसरा, स्प्लिट का ऐतिहासिक डेटा देखें – कई बार बड़े‑बड़े कंपनियों ने स्प्लिट के बाद कुछ हफ़्तों में शेयर की कीमत बढ़ी, पर कभी‑कभी गिरावट भी देखी गई। तीसरा, अपने पोर्टफ़ोलियो में विविधता रखें, एक ही स्टॉक पर बहुत ज्यादा भरोसा न करें।
टैक्स की बात करें तो भारत में स्टॉक स्प्लिट पर कोई कैपिटल गेन टैक्स नहीं लगता, क्योंकि आपके निवेश की कॉस्ट बेस वही रहती है, बस शेयरों की संख्या बदलती है। लेकिन जब आप स्प्लिट के बाद शेयर बेचते हैं, तो उस बिक्री पर टैक्स लगेगा, इसलिए खरीद‑बेच की डेट और कीमत का रिकॉर्ड रखें।
अंत में, स्टॉक स्प्लिट सिर्फ एक मैकेनिज़्म है जो शेयर को छोटा या बड़ा करता है, लेकिन निवेश का मूल उद्देश्य वही रहता है – सही कंपनी चुनना और दीर्घकालिक रिटर्न पर फोकस करना। अगर आप समझदारी से कंपनियों को चुनें और मार्केट की हरकतों पर नजर रखें, तो स्प्लिट आपके हाथ में एक और टूल बन सकता है, जो आपके पोर्टफ़ोलियो को और आकर्षक बना सके।
तो अगली बार जब कोई कंपनी ‘स्टॉक स्प्लिट’ की घोषणा करे, तो इसे सिर्फ कीमत घटने की बात न समझें, बल्कि संभावित एंट्री पॉइंट या लिक्विडिटी बढ़ाने के रणनीतिक कदम के रूप में देखें।