पारदर्शिता का नुकसान: जब सुविधा बन जाती है धोखे का ढंग

जब कोई कहता है कि वो सब कुछ पारदर्शिता, जानकारी का खुला और स्पष्ट प्रवाह, जिससे लोग फैसले ले सकें का समर्थन करता है, तो असली सवाल ये होता है — किसके लिए? क्या ये पारदर्शिता सच में आम आदमी के लिए है, या बस एक शब्द है जिसे बड़े बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है? आज के डिजिटल दुनिया में, जहाँ हर ऐप, हर सरकारी वेबसाइट और हर कंपनी अपनी गोपनीयता नीति, उपयोगकर्ता डेटा के संग्रहण और उपयोग के नियम को लिखकर दिखाती है, असली सवाल ये है कि क्या वो नीति सच में आपकी रक्षा करती है, या बस आपको शांत करने के लिए बनाई गई है?

भारतीय डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDP), 2023 में लागू हुआ ऐसा कानून जो आपके डेटा के इस्तेमाल पर नियंत्रण देता है ने तो बड़ी उम्मीदें जगाईं। लेकिन अगर आप इसके अंदर झांकें, तो पता चलता है कि ये कानून आपको अधिकार देता है, लेकिन उसे इस्तेमाल करने का तरीका आपके हाथ में नहीं है। आपके डेटा को हटाने का अधिकार? हाँ, लेकिन कौन सुनेगा? कंपनी या सरकार अगर चाहे तो एक छोटा सा फॉर्म भरवा देगी, जिसे आपको भरना होगा, फिर भी आपका डेटा गायब नहीं होगा। ये ही है पारदर्शिता का नुकसान — जब आपको लगता है कि आपके पास नियंत्रण है, लेकिन असल में आपकी जानकारी किसी और के हाथ में है।

और फिर है सेवा नियम, जो आपको वेबसाइट का उपयोग करने के नियम बताते हैं, लेकिन अक्सर आपके अधिकारों को कमजोर करते हैं। ये नियम लिखे जाते हैं ऐसे भाषा में कि आप उन्हें नहीं पढ़ पाते, या अगर पढ़ भी लें तो समझ नहीं पाते। ये नियम आपके डेटा के उपयोग को बढ़ाते हैं, लेकिन आपके अधिकारों को सीमित करते हैं। आपको लगता है कि आप वेबसाइट का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन असल में आप उसके डेटा का स्रोत बन गए हैं। ये नुकसान सिर्फ एक टेक कंपनी तक सीमित नहीं है — ये सरकारी विभागों, बैंकों, और यहाँ तक कि आपकी रोज़मर्रा की ऐप्स में भी छिपा है।

आप शायद सोच रहे होंगे — तो फिर इन सबका क्या फायदा? असल जवाब ये है: पारदर्शिता अगर सिर्फ एक शब्द है, तो वो बर्बादी है। लेकिन अगर वो एक जिम्मेदारी है, तो वो बचाव है। इस लिस्टिंग में आपको ऐसी ही खबरें मिलेंगी — जहाँ किसी की गोपनीयता नीति झूठ बोल रही है, किसी का DPDP बस एक लेटर बन गया है, और किसी के सेवा नियम आपके अधिकारों को छीन रहे हैं। ये खबरें आपको बताएंगी कि आपका डेटा कहाँ जा रहा है, और कैसे आप उसे वापस पा सकते हैं। ये वो जानकारी है जिसे आपको चाहिए, न कि जिसे आपको दिखाया जा रहा है।

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20वें वर्ष पर आरटीआई अधिनियम के सामने गंभीर खतरे हैं: केंद्रीय सूचना आयोग खाली, 4 लाख अपीलें जमा, और नियमों में बदलाव से सूचना का अधिकार धीरे-धीरे मिट रहा है।

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