
हरियाणा समाचार विस्तार पर हमें कई बार पढ़ने को मिलता है कि दुर्गा माँ भारतीय जीवन में कितनी अहम है। चाहे घर की चौखटे पर छोटी मोहर लगाके पूजा हो या बड़े मंडप में नौ दिन का उत्सव, सब जगह दुर्गा माँ की असीम शक्ति का जश्न माना जाता है। इस पेज में हम दुर्गा माँ की कहानी, उनका महत्व और साधारण घर में पुजारी‑सुविधा के बारे में बताते हैं, ताकि आप बिना किसी कठिनाई के माँ की आराधना कर सकें।
माँ दुर्गा का जन्म तब हुआ जब देवी माँ दुर्गा ने दुष्ट असुर महिषासुर को हराया। इस जीत के बाद उन्हें दस हाथ, सौंवे शस्त्र और शेर (या गज) पर सवार दिखाया जाता है। दस हाथ मतलब वह सभी आयामों में सक्षम है – शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक। उसके साथ ही वह शेर या गज पर सवारी करती है, जिससे उसकी वीरता और राजसत्ता का संकेत मिलता है। भारत की अलग‑अलग जगहों में दुर्गा को अलग‑अलग रूप में दिखाया जाता है, पर मूल कथा हमेशा उसी एक शक्ति से जुड़ी रहती है।
कहानी में केवल शक्ति ही नहीं, माँ का प्यार भी उजागर होता है। महिषासुर के पास कई बार दोहरावश प्रयास होते हैं, फिर भी दुर्गा माँ उसकी मदद को कभी नहीं छोड़ती। यही कारण है कि कई लोग माँ दुर्गा को रक्षा और आश्रय का प्रतीक मानते हैं – कठिन समय में वह हमेशा साथ देती हैं।
दुर्गा पूजा को आमतौर पर नौ दिन (नवरात्रि) तक चलाया जाता है। अगर आप घर में छोटा सा मंडप बनाना चाहते हैं, तो सबसे पहले साफ‑सुथरा स्थान चुनें, वहाँ एक छोटी सी मुठी (प्लेट) पर मिट्टी या पाउडर चंदन रखें। उस पर दुर्गा का चित्र या मीनाकारी की हुई मूर्ति रखें। फिर प्रत्येक दिन चार‑पाँच घंटे के भीतर जल, फली, सरसों का तेल, और फूल रखकर अर्पण करें।
भक्त अपने दिल से यह कहें – “ओ माँ, आप मेरी रक्षा करें, मेरे घर को खुशियों से भर दें।” धूप, दीप और घंटी का उपयोग करके वातावरण को पवित्र बनाते रहें। हर दिन के अंत में कण्डिप (बारीक चावल) और मिठाई वितरित करें, यह माँ को प्रसन्न करता है और घर में सामजिक सौहार्द बढ़ाता है।
यदि आप बड़े स्तर पर पूजा करना चाहते हैं, तो स्थानीय मंदिर या सामुदायिक केंद्र में आयोजित नवरात्रि कार्यक्रमों में भाग लें। वहाँ पेश किए जाने वाले श्मशान, नृसिंह, साक्षी आदि अनुष्ठान को समझकर हिस्सा लें। इस तरह आप स्थानीय संस्कृति से जुड़ते हैं और माँ दुर्गा की महिमा को और गहरा महसूस करते हैं।
अंत में यह याद रखें कि दुर्गा माँ की पूजा केवल अनुष्ठान तक सीमित नहीं है। वह हमें सिखाती है कि कठिनाइयों का सामना हिम्मत और धैर्य से किया जाए। जब आप रोज़मर्रा की ज़िंदगी में सच्ची निष्ठा और करुणा अपनाते हैं, तो वही आपका असली ‘पुजा’ बन जाता है।