पुंछ जिले के सुरनकोट क्षेत्र में शनिवार की शाम को लगभग 6:15 बजे भारतीय वायु सेना के एक काफिले पर हुए घातक आतंकवादी हमले ने क्षेत्र में तनाव और चिंता की स्थिति को और बढ़ा दिया है। इस हमले में एक जवान की मृत्यु हो गई, जबकि चार जवान घायल हुए हैं, जिसमें से एक की स्थिति गंभीर बताई जा रही है।
Sonia Singh
मई 5, 2024 AT 10:56सभी को दिल से शोक है, साहसिक जवान की यादों को हमेशा सम्मानित रखें। हम सब मिलकर इस दर्द को बांटते हैं और प्रदेश की शांति के लिए काम करेंगे।
Ashutosh Bilange
मई 5, 2024 AT 10:58ओह भाई, ये तो वाकई एक बड़ी बडाइ (बड़ी) ट्रैजेडी है! कब तक ऐसे घातक हमले यहाँ-उधर होते रहेंगे? एयरफोर्स वाले को तो फुल एक्सपर्ट मानते हैं, पर फिर भी एशिया में इतना डरेला नहीं होना चाहिए।
Kaushal Skngh
मई 5, 2024 AT 11:00जवाबदेही जरूरी है।
Harshit Gupta
मई 5, 2024 AT 11:03इंसान की जान पर हमला करना खुदा की नाज़ायज़ इत्ताफ़़ाक नहीं, ये तो हमारे राष्ट्रीय एकता का सीधा हमला है! हर कोई याद रखे‑कि हम भारत के सच्चे बचाव के लिए तैयार हैं, और जो इस धरती को धूमिल करना चाहते हैं, उन्हें कड़ी सजा मिलेगी। हमें अपने देशभक्तों की सच्ची शक्ति को दिखाना होगा, और किसी भी ताक़त को नहीं भूलना चाहिए कि हम कश्मीर की शांति बचाने के लिए हमेशा आगे बढ़ेंगे।
HarDeep Randhawa
मई 5, 2024 AT 11:05क्या बात है, दोस्त!!! तुम तो बिल्कुल सही कह रहे हो!!! पर... क्या तुम्हें नहीं लगता कि कभी‑कभी इस धुआँ‑धार वाले वार्तालाप में थोड़ा‑बहुत समझदारी भी रखनी चाहिए??? हम सभी को मिलकर इस समस्या का समाधान ढूँढ़ना चाहिए!!!
Nivedita Shukla
मई 5, 2024 AT 11:08जंगली हवाओं में जब गूँजती है वो फोक़ी आवाज़, तो दिल की धड़कनें अपना सच्चा स्वर पाती हैं।
इक वाक़ीफ़ी की तरह, हर गोली उस काली रात में एक प्रकाश का बिंदु बनकर चमकती है।
परन्तु जब एक जवान की जान इस अंधेरे में खो जाती है, तो हम सब का अस्तित्व ही प्रश्न में पड़ जाता है।
क्या हम ऐसे ही शांति को स्वीकार करेंगे, जबकि सच में लड़कों का रक्त हमारे जड़ में बहता रहता है?
वमन के पेड़ की छावं में बैठकर सोचता हूँ‑कि हमारे भीतर कितनी नज़रें, कितनी आशाएँ जमीं पर सिमट गई हैं।
एक बच्चे की मुस्कराहट, एक माँ की आँसू, और एक सैनिक की हिम्मत-ये सब एक‑दूसरे में मिलते‑जुलते हैं।
जब देश के उस कोने में दर्द बढ़ता है, तो वादे‑विचार फटे‑फ़ूटे सुनाई देते हैं।
पर मैं मानता हूँ‑कि एकता की लौ को जलते देखना, हमारे दिलों को फिर से ठोस बनाता है।
हर नष्ट हुई जिंदगी एक नई कहानी लिखती है‑जिसमें साहस, शौर्य और आत्म‑विश्वास की रोशनी होती है।
हमें इस भावना को जीवन में उतारना चाहिए, न कि सिर्फ शब्दों में।
अपनी बिस्मिलाह‑बिलाकाल, हम सबको मिलकर आगे बढ़ना चाहिए, चाहे बादल कितने भी गंभीर हों।
इस दर्द के बीच, हम में से हर कोई एक दीपक बन सकता है, जो अंधेरे में उजाला लाता है।
ऐसे कष्टों को सहकर हम अपने अंदर की शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति को पहचानते हैं।
मुझे लगता है‑कि यह वही क्षण है जब हम अपनी सीमाओं को तोड़ कर, नई आशा का सत्व बनते हैं।
आख़िरकार, जब हर आवाज़ सुनाई देती है, तो शांति केवल एक सपना नहीं रह जाती, बल्कि एक साकार वास्तविकता बन जाती है।
Rahul Chavhan
मई 5, 2024 AT 11:10बिलकुल सही कहा, हमें इस दर्द को ऊर्जा में बदलकर आगे बढ़ना चाहिए और हर दिन छोटे‑छोटे कदमों से शांति की ओर चलना चाहिए।