प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (NDA) की संसदीय दल की बैठक में भाग लिया, जहाँ उनका स्वागत 'भारत माता की जय' के नारों से हुआ। इस बैठक में, मोदी ने NDA सांसदों को न केवल पार्लियामेंट की कार्यवाही में सक्रिय भागीदारी निभाने की सलाह दी, बल्कि उन्हें संसदीय नियमों और आचरण का पालन करने के लिए भी प्रेरित किया। यह बैठक ऐसे समय में हुई जब इससे एक दिन पूर्व विपक्ष के नेता राहुल गांधी को लोकसभा में 'सबसे गैर-जिम्मेदाराना' भाषण देने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा।
PM मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि विपक्ष इस बात से परेशान है कि पहली बार एक गैर-कांग्रेस नेता, प्रधानमंत्री के पद पर लगातार तीसरी बार काबिज हुआ है। उन्होंने NDA सांसदों से आग्रह किया कि वे संसद में नियमित रूप से उपस्थित रहें, संसदीय मुद्दों का अध्ययन करें और अपने निर्वाचन क्षेत्रों से संबंधित मामलों को प्रभावी ढंग से उठाएं।
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने पत्रकारों को मोदी के संदेश के बारे में बताया। इस संदेश में मोदी ने विशेष रूप से नए सांसदों को वरिष्ठ सांसदों से सीखने और संसदीय प्रथाओं को समझने की सलाह दी। उन्होंने बताया कि कैसे वरिष्ठ सांसदों का अनुभव नए सांसदों के लिए बहुत मूल्यवान हो सकता है।
जैसा कि सभी को ज्ञात है, हाल ही में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने लोकसभा में एक भाषण दिया था, जिसके कई हिस्सों को सदन की कार्रवाई से हटा दिया गया। इस निर्णय ने पूरे देश में चर्चा का माहौल गरमा दिया है। जहां एक तरफ NDA ने इसकी सराहना की, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र की आवाज दबाने का प्रयास करार दिया।
आपको बता दें कि लोकसभा के सदन में दिए गए भाषणों को संसदीय नियमों के तहत गहन जाँच के बाद ही हटाया जाता है। यदि किसी भाषण का कोई हिस्सा अपमानजनक, असत्य या असंसदीय होता है, तो उसे कार्रवाई से हटा दिया जाता है।
इस मामले में, राहुल गांधी के भाषण में सरकार पर गंभीर आरोप लगाए गए थे। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार देश के मामलों में संलग्न नहीं है और कई महत्वपूर्ण मुद्दों की अनदेखी कर रही है। इन आरोपों को NDA ने अनुचित और असत्य करार दिया।
इसके बाद यह निर्णय लिया गया कि राहुल गांधी के भाषण के कुछ हिस्सों को हटाया जाएगा, जिसे विपक्ष ने लोकतंत्र की हत्या और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रहार के रूप में देखा।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी यह मामला उठाया गया है, जहाँ विभिन्न संगठनों और व्यक्तियों ने अपनी प्रतिक्रियाएँ दी हैं। कुछ इसे एक राजनीतिक साजिश मानते हैं, तो कुछ इसे संसद की गरिमा बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम के रूप में देखते हैं।
यह घटना आने वाले दिनों में और जितनी चर्चा में रहेगी, उतनी ही ज्यादा संसद के दोनों सदनों में उथल-पुथल मचने की संभावना है। सभी दलों को मिलकर इस मुद्दे का समाधान निकालने की आवश्यकता है ताकि जनता का विश्वास लोकतांत्रिक प्रणाली में बना रहे।