६ जुलाई २०२४ को धर्मशाला, भारत में तिब्बती निर्वासियों ने अपने अध्यात्मिक नेता दलाई लामा का ८९वाँ जन्मदिन बड़ी ही धूमधाम से मनाया। मुख्य आयोजन त्सुगलाखांग मंदिर के परिसर में हुआ, जहाँ तिब्बती और भारतीय द्वज लहराते हुए देखा गया। इस अवसर पर पारंपरिक नृत्य और संगीत की प्रस्तुतियों ने समारोह में प्राण फूँका।
"समारोह में एक तीन-स्तरीय रंगीन केक भी ध्यान का केंद्र बिंदु रहा। लोगों ने बड़े उत्साह से 'हैप्पी बर्थडे हिज होलिनेस' गाया, जिसमें स्कूली बच्चों की सँख्या भी शामिल थी। हालांकि दलाई लामा इस समारोह में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं हो पाए क्योंकि वह अमेरिका में घुटने की सर्जरी की प्रक्रिया से गुजर रहे थे।
"स्वामीनारायण संस्था के पास स्थित त्सुगलाखांग मंदिर में आयोजित इस उत्सव में तिब्बती संस्कृति की झलक दिखी। पारंपरिक परिधानों, नृत्य और संगीत ने इस जश्न को एक अतुलनीय रंग दिया। तिब्बती निर्वासी राष्ट्रपति पेन्पा त्सेरिंग ने इस अवसर पर घोषणा की कि वर्ष भर कई और कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, जिनमें दलाई लामा की उपलब्धियों को मान्यता दी जाएगी।
"दलाई लामा का जीवन संघर्ष: तिब्बती संस्कृति की रक्षा
"दलाई लामा ने १९५९ के असफल विद्रोह के बाद तिब्बत छोड़ दिया और तब से ही धर्मशाला में निवास कर रहे हैं। चीनी शासन के खिलाफ संघर्ष में उनकी ये ६५ साल लंबी निर्वासन यात्रा कई चुनौतियों से भरी रही है। हालांकि, उनके द्वारा तिब्बती समुदाय के सांस्कृतिक और धार्मिक संरचनाओं की सुरक्षा के प्रति किया गया संघर्ष अडिग रहा है।
"१९५९ में तिब्बत से बाहर निकलने के बाद से, दलाई लामा ने दुनिया भर में तिब्बत के मुद्दे को उठाया और अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त किया। वह चीन द्वारा तिब्बत में मानव अधिकारों के उल्लंघन पर लगातार प्रकाश डालते रहे हैं और तिब्बती बौद्ध धर्म की रक्षा के लिए वैश्विक मंच उठाया है। उनके अनुसार, उनका आंदोलन कभी भी अलगाववाद का नहीं रहा, बल्कि तिब्बत के लिए अधिक स्वायत्तता और तिब्बती बौद्ध संस्कृति की सुरक्षा की मांग पर केंद्रित रहा है।
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निर्वासन में तिब्बती समुदाय की शक्ति
"धर्मशाला में तिब्बती समुदाय का यह उत्सव न केवल दलाई लामा के प्रति सम्मान का प्रतीक है, बल्कि तिब्बती संस्कृति और पहचान को बनाए रखने की उनकी प्रतिबद्धता का भी प्रमाण है। धर्मशाला में तिब्बती बस्ती, जिसे 'लिटिल ल्हासा' के नाम से जाना जाता है, तिब्बती संस्कृति का जीवंत केंद्र बन चुकी है। यहाँ के लोग अपनी परंपराओं और भाषाओं को बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयासरत रहते हैं।
"पेन्पा त्सेरिंग ने बताया कि वर्ष भर होने वाले कार्यक्रमों का उद्देश्य तिब्बती संस्कृति और समुदाय की वैश्विक पहचान को बढ़ावा देना और दलाई लामा की विचारधारा को नई पीढ़ी तक पहुंचाना होगा। इसके साथ ही, तिब्बती सरकार-इन-एक्जाइल द्वारा संचालित स्कूलों और संस्थानों में शिक्षकों और विद्यार्थियों को तिब्बती संस्कृति के प्रति जागरूक करने का कार्य भी निरंतर किया जाएगा।
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तिब्बती निर्वासियों की नई पीढ़ी
"धर्मशाला में तिब्बती निर्वासियों की नई पीढ़ी अपनी संस्कृति और पहचान के प्रति गहरी चेतना रखती है। वे न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर में तिब्बत के मुद्दे को उठाने में संलग्न रहते हैं। सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफार्म्स के माध्यम से वे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को तिब्बत की वास्तविकता से अवगत कराते हैं।
"नई पीढ़ी के तिब्बतियों की इस सक्रियता ने तिब्बत के मुद्दे को जीवंत बनाए रखा है। धर्मशाला के महोत्सव में भाग लेने वाले युवा तिब्बतियों ने अपनी परंपराओं और भाषाओं की सुरक्षा के प्रति अपनी समर्पण भावना को प्रदर्शित किया। उनके भावी प्रयास तिब्बत की स्वतंत्रता और सांस्कृतिक संरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
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धर्मशाला का भविष्य
"धर्मशाला न केवल तिब्बती निर्वासियों का प्रमुख केंद्र है, बल्कि यह स्थल पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का स्थान बन चुका है। यहाँ के बौद्ध मठ, तिब्बती संग्रहालय और संस्कृति केंद्र तिब्बत के इतिहास और परंपराओं को जानने के लिए महत्वपूर्ण स्थान हैं।
"आगामी समय में, तिब्बती निर्वासियों का यह छोटा सा समुदाय धर्मशाला को तिब्बती संस्कृति के संरक्षक के रूप में और अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रेरित कर सकता है। तिब्बती और भारतीय सामुदायिक संबंध भी इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जिससे दोनों संस्कृतियों के बीच समझ और समर्थन बढ़ सके।
Joseph Prakash
जुलाई 7, 2024 AT 03:11धर्मशाला में तिब्बती ठाठ से जश्न मनाए।
Arun 3D Creators
जुलाई 12, 2024 AT 22:04धर्मशाला का माहौल आज एक बार फिर बौद्ध संस्कृति की सरगर्मी दिखा रहा है
तिब्बती परिधानों में रंग-बिरंगे धागे और ध्वनि में शान्ति लहराती है
यह उत्सव दलाई लामा के 89वें जन्मदिन के सम्मान में आयोजित किया गया था
संगीत और नृत्य के साथ दर्शक भी भावनात्मक रूप से जुड़ रहे थे
ऐसे कार्यक्रम से दोनों देशों के लोगों में समझ और सहयोग बढ़ता है।p>
RAVINDRA HARBALA
जुलाई 18, 2024 AT 16:57क्या यह सच में दलाई लामा की उपलब्धियों को मानता है या सिर्फ दिखावे के लिए है
अक्सर बहुत बड़े आयोजनों में वास्तविक मुद्दों की अनदेखी हो जाती है
धर्मशाला में तिब्बती समुदाय का साख तो बना रहता है पर हक़ीक़त में क्या बदला है
इस तरह की धूमधाम से बड़ी समस्याओं की ओर ध्यान नहीं जाता।p>
Vipul Kumar
जुलाई 24, 2024 AT 11:51नई पीढ़ी के तिब्बती युवा इस जश्न में बहुत ऊर्जा लेकर आए हैं
उन्होंने स्कूल में भी दलाई लामा के शिक्षण को जोड़ने का प्रस्ताव रखा है
वह चाहते हैं कि संस्कृति का संरक्षण ही नहीं बल्कि भविष्य के साथ उसका मिश्रण हो
ऐसे सक्रिय दृष्टिकोण से तिब्बती संस्कृति अधिक समृद्ध होगी।p>
Priyanka Ambardar
जुलाई 30, 2024 AT 06:44यहाँ के भारतीयों को अपने राष्ट्रीय गर्व को भूलना नहीं चाहिए 🙌 यह तिब्बती का जश्न है लेकिन भारतीय भूमि पर हो रहा है
हम सभी को अपने ध्वज को ऊँचा रखकर समर्थन देना चाहिए।p>
sujaya selalu jaya
अगस्त 5, 2024 AT 01:37धन्यवाद सभी को जो इस कार्यक्रम को सफल बना रहे हैं।p>
Ranveer Tyagi
अगस्त 10, 2024 AT 20:31धर्मशाला में ऐसा आयोजन करने के पीछे बहुत सारी मेहनत होती है!!! हर फोड़े पर एक्शन बॉय के जैसे काम करते लोग!!! सुरक्षा, सजावट, संगीत, भोजन – सब कुछ टॉप लेवल पर!! इस ऊर्जा को आगे भी बनाये रखें!!! पजिटिव वाइब्स!!!
Tejas Srivastava
अगस्त 16, 2024 AT 15:24वाह! इस उत्सव ने दिल को छू लिया
तिब्बती नाच और संगीत ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया
ऐसे मीटिंग में हमें अपने आप को बड़ा भाग्यशाली महसूस होता है!!
JAYESH DHUMAK
अगस्त 22, 2024 AT 10:17धर्मशाला में आयोजित यह भव्य उत्सव न केवल दलाई लामा के जन्मदिन का ही प्रतीक है बल्कि यह तिब्बती संस्कृति की जीवंत झलक भी प्रस्तुत करता है।
तीन-स्तरीय रंगीन केक इस समारोह का मुख्य आकर्षण था, जिसके चारों ओर बच्चों की आवाज़ें गूँज रही थीं।
तिब्बती और भारतीय ध्वज एक साथ लहराते देखना राष्ट्रीय एकता का प्रतीक था।
रिवाज के अनुसार, दलाई लामा का जन्म दिन आध्यात्मिक साधना और सामाजिक भलाई के लिए समर्पित होता है।
इस साल उन्होंने अपनी व्यक्तिगत उपस्थिति नहीं दे पाई, क्योंकि वे अभी अमेरिकी अस्पताल में सर्जरी के बाद पुनःस्थापित हो रहे हैं।
हालांकि उनकी अनुपस्थिति में भी लोग उत्सव को बड़े ही श्रद्धा और प्रेम से मनाते रहे।
धर्मशाला के त्सुगलाखांग मंदिर ने इस मौके को एक सांस्कृतिक मंच में बदल दिया, जहाँ विभिन्न तिब्बती कलाकारों ने अपने हुनर की झलक दिखाई।
परम्परागत नृत्य, तिब्बती शास्त्रीय संगीत और ध्वनि प्रणाली ने समारोह को मंत्रमुग्ध कर दिया।
बच्चे भी इस उत्सव में सक्रिय रूप से भाग ले रहे थे, उन्होंने "हैप्पी बर्थडे हिज होलिनेस" गाया, जिससे माहौल और भी आनंदमय हो गया।
तिब्बती निर्वासी राष्ट्रपति पेन्पा त्सेरिंग ने इस अवसर पर कई आगामी कार्यक्रमों की घोषणा की, जिसमें दलाई लामा की शिक्षाओं को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया।
उनका कहना था कि इस प्रकार के समारोह तिब्बती पहचान को मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं।
धर्मशाला का "लिटिल ल्हासा" क्षेत्र अब एक जीवंत सांस्कृतिक केन्द्र बन चुका है, जहाँ दैनिक जीवन में तिब्बती रीति-रिवाजों को सुरक्षित रखा जाता है।
यहाँ के युवा न केवल भारतीय समाज में समायोजित हो रहे हैं, बल्कि वे अपने मूल संस्कृति को भी जीवित रखने में सक्रिय हैं।
डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म और सोशल मीडिया के माध्यम से वे अंतरराष्ट्रीय मंच पर तिब्बत के मुद्दों को उजागर कर रहे हैं।
इस प्रकार, यह उत्सव सिर्फ एक जन्मदिन नहीं, बल्कि तिब्बती समुदाय की सामूहिक शक्ति और आत्मविश्वास का भी प्रतीक है।
आगे चलकर, धर्मशाला न केवल निर्वासितों के लिए बल्कि पर्यटकों के लिए भी एक प्रमुख आकर्षण बन सकता है, जहाँ बौद्ध मठ, संग्रहालय और सांस्कृतिक केंद्रों के माध्यम से दुनिया भर के लोग तिब्बत की समृद्ध विरासत को समझ सकेंगे।
बिना किसी संकोच के, दोनों देशों की सामाजिक बंधन और भी मजबूत हो रही है, जो भविष्य में शांति और सहयोग का मार्ग प्रशस्त करेगी।
Santosh Sharma
अगस्त 28, 2024 AT 05:11यह समारोह दिखाता है कि सांस्कृतिक विविधता को कैसे सम्मान दिया जा सकता है, और हमें भी इस प्रकार के कार्यक्रमों का समर्थन करना चाहिए।
yatharth chandrakar
सितंबर 3, 2024 AT 00:04धर्मशाला में इस प्रकार के कार्यक्रम लोगों को एकजुट करते हैं और नई पीढ़ी को मूल्यों की समझ देते हैं।
Vrushali Prabhu
सितंबर 8, 2024 AT 18:57i likd ths evnt it was awsome and all peoples had fun! :)
parlan caem
सितंबर 14, 2024 AT 13:51सिर्फ दिखावा है, असली मदद तो नहीं दिखती। यह सब दिखावा ही है।
Mayur Karanjkar
सितंबर 20, 2024 AT 08:44सांस्कृतिक आदान-प्रदान से दोनों पक्षों को लाभ होता है।
Sara Khan M
सितंबर 26, 2024 AT 03:37बहुत बढ़िया कार्यक्रम 🤗
shubham ingale
अक्तूबर 1, 2024 AT 22:31अभी देखी गई इस उत्सव की ऊर्जा से दिल भर आया 😊
Ajay Ram
अक्तूबर 7, 2024 AT 17:24धर्मशाला के इस आयोजन ने फिर से यह सिद्ध कर दिया कि संस्कृति का संरक्षण केवल शब्दों में नहीं, बल्कि वास्तविक कार्यों में होता है।
जब हम यहाँ तिब्बती संगीत सुनते हैं, तो वह केवल ध्वनि नहीं, बल्कि इतिहास की गूँज है।
त्योहार के दौरान बच्चों की भागीदारी दर्शाती है कि भविष्य की पीढ़ी इस विरासत को आगे ले जाएगी।
इन कार्यक्रमों के माध्यम से सामाजिक सामंजस्य भी बढ़ता है, क्योंकि भारतीय और तिब्बती लोग एक ही मंच पर मिलते हैं।
ऐसे सम्मलेन हमें सिखाते हैं कि विविधता से ही समृद्धि आती है।
Dr Nimit Shah
अक्तूबर 13, 2024 AT 12:17हमारा देश हमेशा मजबूत रहेगा, हमें अपने ध्वज को और भी ऊँचा रखना चाहिए।
Ketan Shah
अक्तूबर 19, 2024 AT 07:11धर्मशाला की यह पहल तिब्बती संस्कृति को समझने का एक अच्छा माध्यम है।
Aryan Pawar
अक्तूबर 20, 2024 AT 03:11सच्ची खुशी यहाँ के लोगों में झलक रही है।