शरद पूर्णिमा भारत में अत्यंत धूमधाम से मनाई जाने वाली धार्मिक त्यौहार है, जिसे कोजागर पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन का अद्वितीय महत्व जगजाहिर है, क्योंकि माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी सभी सोलह कलाओं के साथ प्रकट होता है। 2024 में, यह पर्व 16 अक्टूबर को पड़ रहा है। पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर की शाम 7:45 बजे शुरू होकर 17 अक्टूबर की सुबह 5:22 बजे तक रहेगी।
हालांकि पंचांग के अनुसार यह तिथि 17 अक्टूबर को है, लेकिन कोजागर पूर्णिमा चंद्रमा के विशेष दर्शन और पूजा के लिए रात के समय की आवश्यकता होती है। इस लिहाज से, ज्योतिष शास्त्री दिवाकर त्रिपाठी ने 16 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा मनाने का सुझाव दिया है, जबकि 17 अक्टूबर को स्नान और दान के लिए उत्तम माना गया है।
शरद पूर्णिमा की रात लक्ष्मी पूजा भी होती है। इस साल लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त शाम 7:18 से रात 8:27 तक है, इसके अलावा धार्मिक अनुष्ठानों के लिए निशीथ काल रात 11:07 से सुबह 1:25 तक का समय उचित माना गया है। इस अवधि में किये गए पूजा-अनुष्ठान बहुत फलदायक होते हैं।
शरद पूर्णिमा के रात को चावल की खीर बनायी जाती है जो खुले आसमान के नीचे चांदनी में रखी जाती है। यह माना जाता है कि खीर पर पड़ने वाली चंदन की किरणें इसे पौष्टिक और ऊर्जावान बनाती हैं। अगले दिन सुबह इस खीर का सेवन करने से स्वास्थ्य में वृद्धि होती है और इसे शुभ और समृद्धिदायक माना जाता है।
ऐसी मान्यता है कि इस रात देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं और धरती पर जागते हुए लोगों को समृद्धि और सुख का आशीर्वाद देती हैं। इसीलिए लोग सामान्यतः इस रात जागरण करते हैं और भजन-कीर्तन का आयोजन करते हैं, जिससे देवी लक्ष्मी की कृपा उन पर बरस सके। यह पर्व केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं बल्कि सामाजिक समरसता का भी प्रतीक है, जिसमें पड़ोसी और समाज के लोग मिलजुल कर खुशियां मनाते हैं।
हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का अत्यधिक महत्व है, क्योंकि यह भक्ति, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। यह दिन लोगों को अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने की प्रेरणा देता है। इस पर्व की खुशियाँ केवल धार्मिक सीमाओं तक ही सीमित नहीं रहतीं, बल्कि यह मिलनसारिता और समाजिक समारस्य का भी संदेश देती हैं।
धार्मिक दृष्टिकोण से जहां इस पर्व का संबंध देवी-देवताओं की उपासना से है, वहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह चंद्रमा के प्रति हमारी आस्था और उससे जुड़ी शक्ति को व्यक्त करता है। वैज्ञानिक तौर पर भी यह गौर किया गया है कि पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की किरणों में विशेष प्रकार की ऊर्जा होती है, जो मनुष्य के दिमाग और शरीर के लिए लाभकारी होती है।
इस पर्व को मनाते समय व्यक्ति को न केवल धार्मिक क्रियाओं में संलग्न होना चाहिए, बल्कि व्यक्तिगत रूप से भी यह अवसर साधना और संयम का होता है। यह विशेष रात ध्यान और साधना के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है, जिससे व्यक्ति की आंतरिक चेतना जागृत होती है और उसे एक नयी दिशा मिलती है।
इस प्रकार शरद पूर्णिमा हर वर्ष भक्तों और श्रद्धालुओं को एक विशेष उत्सव के रूप में निमंत्रण देती है, जिससे जीवन में नई दृष्टि और जागृति प्राप्त होती है।