19 अप्रैल 2025 की रात को अफगानिस्तान-ताजिकिस्तान सीमा पर 5.9 तीव्रता का भूकंप आया। भूकंप का केंद्र हिंदूकुश के पहाड़ी इलाके में 36.13°N अक्षांश और 71.38°E देशांतर पर, जमीन से लगभग 85.5 किलोमीटर नीचे था। जर्मनी के रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंसेज (GFZ) के मुताबिक, इस इलाके में धरती की थरथराहट नई बात नहीं है। यहां भारत और यूरेशिया की प्लेटें टकराती हैं, जब-तब धरती कांपने लगती है।
भूकंप तो सीमावर्ती इलाके में आया, लेकिन झटके दूर-दूर तक महसूस किए गए। उत्तर भारत के कइ हिस्सों में, खासकर दिल्ली एनसीआर में लोगों ने रात में पलंग हिलते महसूस किए। सोशल मीडिया पर कई लोग जाग गए और तुरंत ही अपने घरों से बाहर निकल आए। हालांकि भारत या पाकिस्तान में अब तक किसी बड़े नुकसान, मौत या इमारतों के गिरने की पुख्ता पुष्टि नहीं मिली है। फिर भी लोगों के मन में डर बना रहा, क्योंकि 2023 में हेरात (अफगानिस्तान) में आए 6.3 तीव्रता के भूकंप की यादें आज भी ताजा हैं, जिसमें हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे।
हिंदूकुश पहाड़ियां भूकंप के लिए बदनाम हो चुकी हैं। ये क्षेत्र भारत और यूरेशियाई प्लेट की आपसी भिड़ंत की वजह से बहुत ज्यादा संवेदनशील है। हर साल यहां दर्जनों छोटे-बड़े भूकंप आते रहते हैं। जनवरी 2022 में भी इसी इलाके में एक बड़े भूकंप के झटके महसूस किए गए थे। अफगानिस्तान में खासकर गांवों और कस्बों में मकान मिट्टी और पत्थर के बने हैं, जिनमें भूकंप के समय भारी नुकसान का खतरा बना रहता है।
इस बार के भूकंप से सबसे ज्यादा चिंता कमजोर बुनियादी ढांचे और मानवीय संकट को लेकर है। दशकों की जंग, आंतरिक विवाद और कमज़ोर व्यवस्था ने इस पूरे इलाके को और अधिक संवेदनशील बना दिया है। यूनाइटेड नेशंस ऑफिस फॉर द कोऑर्डिनेशन ऑफ ह्यूमैनिटेरियन अफेयर्स (UNOCHA) ने बार-बार आगाह किया है कि अफगानिस्तान प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से बेहद जोखिम भरा है। यहां बाढ़, भूस्खलन और भूकंप बार-बार तबाही मचाते हैं, जिससे विस्थापित और कमज़ोर तबके सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।
इस बार भले ही कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ, लेकिन स्थानीय प्रशासन और राहत एजेंसियां पूरी तरह अलर्ट पर हैं। किसी भी एहतियात से कोई कोताही नहीं बरती जा रही है। मौजूदा प्राकृतिक संकट ने एक बार फिर दिखा दिया है कि भूकंप प्रभावित इलाकों में बुनियादी ढांचे को सुरक्षित बनाना और लोगों को जागरूक करना कितना जरूरी है।