मोहम्मद 2024: ताज़िया की परंपरा और इतिहास, जानें तारीख, महत्त्व और विशेषता

जुल॰, 17 2024

मुहर्रम: इस्लामी नव वर्ष की शुरुआत

मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना होता है और इस्लामी नव वर्ष की शुरुआत इसी महीने से होती है। लेकिन इस्लाम धर्म में इस महीने का महत्त्व सिर्फ नए साल के आगमन तक सीमित नहीं है। यह महीना विशेषतः शिया मुसलमानों के लिए शोक और दुःख का महीना होता है। मुहर्रम का 10वां दिन, जिसे अशूरा कहा जाता है, इस माह का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है।

ताज़िया और इसकी परंपरा

अशूरा के दिन इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए शिया मुसलमान ताज़िया बनाते हैं और उनकी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। ताज़िया रंग-बिरंगी सजावटें होती हैं, जो शिया मुसलमानों के लिए प्रतीकात्मक महत्व रखती हैं। इन ताज़ियाओं को लोगों के घरों और समुदायों में सजाया जाता है और इसके साथ शोक की प्रक्रिया शुरू होती है।

करबला की लड़ाई और इमाम हुसैन की शहादत

ईस्वी सन 680 में करबला की लड़ाई हुई थी, जिसमें इमाम हुसैन और उनके परिवार के सदस्यों ने अपनी जान गवाई थी। यह लड़ाई यज़ीद की सेना और इमाम हुसैन के अनुयायियों के बीच हुई थी। करबला की लड़ाई इस्लाम के इतिहास में सबसे अधिक दुखद घटनाओं में से एक मानी जाती है और इसका गहरा प्रभाव शिया मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं पर पड़ा है।

शोक और शोक सभाएँ

मुहर्रम के महीने में शोक सभाएँ आयोजित की जाती हैं, जिनमें शिया मुसलमान इमाम हुसैन की वीरता और उनके बलिदान को याद करते हैं। इन सभाओं में नज़्म, मर्सिया और नौहे पढ़े जाते हैं। मर्सिया और नौहे खास तौर पर इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को याद करते हुए दर्द और पीड़ा का वर्णन करते हैं।

शोक के इस महीने में शिया मुसलमान विशेष परिधान पहनते हैं और चेहरे को काले कपड़े से ढकते हैं। यह शोक उनके दुःख और इमाम हुसैन के बलिदान की गहरी भावना को दर्शाता है।

रस्म और परंपराएँ

मुहर्रम के दसवें दिन, यानी अशूरा पर शिया मुसलमान विभिन्न प्रकार की रस्में निभाते हैं। इनमें ताजिया निकालना, मातम करना, और खुदाई गतिविधियाँ शामिल होती हैं। कहीं-कहीं शिया मुसलमान अपने शरीर को आहत करते हैं, यह प्रतीक रूप में इमाम हुसैन के बलिदान के प्रति अपनी भावनाएँ व्यक्त करने का तरीका होता है।

इसके अलावा, शिया समुदाय द्वारा अन्य धार्मिक गतिविधियाँ भी होती हैं जैसे कि रोज़ा रखना और मांगने वाले लोगों को भोजन और पानी प्रदान करना।

सुननी मुसलमानों की गतिविधियाँ

सुननी मुसलमान भी मुहर्रम की महत्त्वपूर्णता को समझते हैं, लेकिन उनकी रूपरेखा और तरीके शिया समुदाय से अलग होते हैं। सुननी मुसलमान इस दिन विशेष रूप से रोजा रखते हैं और मस्जिदों में विशेष नमाज़ पढ़ते हैं। उनके लिए अशूरा का मुख्य उद्देश्य अल्लाह की कुरबत हासिल करना होता है।

मुहर्रम का सांस्कृतिक और सामुदायिक प्रभाव

मुहर्रम का प्रभाव केवल धार्मिक न होकर सांस्कृतिक और सामुदायिक भी होता है। इस महीने में मुस्लिम समुदाय एक दूसरे के करीब आता है और एकजुटता का प्रतीक बनता है। शोक के इस महीने में धार्मिकता की भावना और इमाम हुसैन के प्रति सम्मान अधिक गहरा होता है।

दान और खैरात

मुहर्रम के दौरान दान और खैरात देना विशेष महत्त्व रखता है। शिया समुदाय विशेष रूप से गरीबों और वंचितों के बीच खाद्य सामग्रियों, कपड़ों, और अन्य आवश्यकताओं का वितरण करता है। यह गतिविधियाँ सामुदायिक सहानुभूति और सहयोग की भावना को प्रदर्शित करती हैं।

मुहर्रम 2024 की तारीखें

2024 में अशूरा की तारीख इस्लामी पंचांग के अनुसार निर्धारित की जाएगी। यह महत्वपूर्ण है कि मुहर्रम का प्रारंभ और अशूरा की तिथि विभिन्न देशों में स्थानीय समय के अनुसार भिन्न हो सकती है, क्योंकि यह चाँद के दिखने पर निर्भर करता है।

अशूरा का ऐतिहासिक महत्त्व

कर्बला के बलिदान की घटना इस्लामी इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है। इमाम हुसैन और उनके अनुयायियों ने जुल्म और अत्याचार का विरोध करते हुए शहादत प्राप्त की थी। यह घटना आज भी अन्याय और अत्याचार के खिलाफ लड़ाई का प्रतीक मानी जाती है।

मुहर्रम और अशूरा का महत्त्व पूरी दुनिया के मुसलमानों के दिलों में बसा हुआ है। यह मानवता और भाईचारे की भावना को न केवल मुस्लिम समुदाय में बल्कि अन्य धर्मों में भी फैलाता है।

17 टिप्पणि

  • Image placeholder

    Ajay Ram

    जुलाई 17, 2024 AT 23:23

    मुहर्रम का इतिहास निश्चित रूप से इस्लामी कैलेंडर की जड़ में निहित है, क्योंकि यह पहला महीने है जिसमें समय का नया चक्र शुरू होता है। इस महीने की उत्पत्ति को समझने के लिए हमें प्राचीन अरब के सामाजिक संरचनाओं पर गौर करना चाहिए, जहाँ मौसमी बदलाव और धार्मिक आयोजन घनिष्ठ रूप से जुड़े थे। शिया समुदाय के लिए अशूरा विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह इमाम हुसैन के शहादत की स्मृति का प्रतीक है। करबला की लड़ाई को केवल एक सैन्य टकराव के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे सामाजिक न्याय के संघर्ष के रूप में भी समझा जा सकता है। इस संघर्ष ने शक्ति के दुरुपयोग के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले लोगों को प्रेरित किया, और यह आज की कई सामाजिक आंदोलनों में परिलक्षित होता है। ताज़िया की परंपरा में रंगीन सजावटें केवल सौंदर्य नहीं, बल्कि वे विभिन्न सामाजिक वर्गों और सांस्कृतिक विविधताओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। ताज़िया को घरों में स्थापित करना समुदाय में एकजुटता और सहयोग को सुदृढ़ करता है, जिससे सामाजिक बंधन और भी मजबूत होते हैं। शोक सभाओं में नज़्म, मर्सिया और नौहे की प्रस्तुति भावनात्मक catharsis का काम करती है, जिससे शोक व्यक्तियों को आत्मीयता का अनुभव होता है। इस दौरान चेहरे पर काले कपड़े रखना न केवल व्यक्तिगत दु:ख को दर्शाता है, बल्कि सामाजिक चेतना को भी जागरूक करता है। दान और खैरात की परम्पराएँ इस महीने में आर्थिक असमानताओं को कम करने के लिए एक माध्यम बनती हैं, जिससे जरूरतमंदों को सामुदायिक समर्थन मिलता है। सुननी मुसलमानों द्वारा परहेज़ और नमाज़ की रीतियां इसआहते के विविधतापूर्ण धार्मिक अभिव्यक्तियों को दर्शाती हैं। यह विविधता इस्लाम के व्यापक और समावेशी स्वरूप को उजागर करती है, जहाँ विभिन्न मौलिक मान्यताएँ सह-अस्तित्व में रहती हैं। मुहर्रम के दौरान सामाजिक सहयोग का प्रभाव राष्ट्रीय स्तर पर भी देखा जाता है, क्योंकि सामुदायिक कार्यशालाओं और भोजन वितरण से सामाजिक सुरक्षा की भावना प्रबल होती है। इतिहासकार अक्सर यह देखते हैं कि ऐसी सामुदायिक परम्पराएँ सामाजिक स्थिरता को बनाए रखती हैं, जिससे सामाजिक तनाव कम होता है। इस प्रकार, मुहर्रम केवल एक धार्मिक समय नहीं, बल्कि सामाजिक एकता, न्याय, और मानवीय मूल्यों का प्रतिबिंब है, जो विभिन्न समुदायों को एक साथ जोड़ता है।

  • Image placeholder

    Dr Nimit Shah

    जुलाई 18, 2024 AT 00:00

    हमारे भारतीय धरती पर इस तरह की परम्पराओं का होना हमारे सांस्कृतिक विविधता का प्रमाण है, और यह देखना चाहिए कि हम इस धरोहर को सहेज कर रखें। इस महीने के दान कार्यों में यदि हम अपने स्थानीय NGOs के साथ सहयोग करें तो प्रभाव और भी बड़ा हो सकता है।

  • Image placeholder

    Ketan Shah

    जुलाई 18, 2024 AT 01:23

    ताज़िया के रंगों में हर रंग का अर्थ अलग है, जैसे पीला आशा को, हरा शांति को दर्शाता है। इस परम्परा को समझने के लिए हमें स्थानीय इतिहासकारों से बात करनी चाहिए, क्योंकि हर क्षेत्र में थोड़ी अलग व्याख्या मिलती है।

  • Image placeholder

    Aryan Pawar

    जुलाई 18, 2024 AT 02:46

    ताज़िया बनाते समय जो मेहनत लगती है वो बेमिसाल है
    साथ ही ये सामुदायिक भावना को भी बढ़ाता है

  • Image placeholder

    Shritam Mohanty

    जुलाई 18, 2024 AT 04:10

    पर्यवेक्षक कहेंगे कि चाँद के दिखने की तारीखें केवल राजनीतिक एजेंडा का हिस्सा हैं, और इस पर हम सबको सतर्क रहना चाहिए।

  • Image placeholder

    Anuj Panchal

    जुलाई 18, 2024 AT 05:33

    परंपरागत एथनो-धार्मिक सुस्पेक्ट्रम में इमोशनल इक्विटी को मैप करना, सांस्कृतिक कॉन्फ़िगरेशन के टेलीओमिक्स को समझने के लिए आवश्यक है।

  • Image placeholder

    Prakashchander Bhatt

    जुलाई 18, 2024 AT 06:56

    बहुत ही खूबसूरत परम्परा है यह, इसे देखते ही दिल को शांति मिलती है और हम सबको मिलजुल कर इसका सम्मान करना चाहिए।

  • Image placeholder

    Mala Strahle

    जुलाई 18, 2024 AT 08:20

    इन शोक सभाओं में भावना की गहराई को महसूस करना एक अलग ही अनुभव है, और यह हमारे सामाजिक बंधनों को और मजबूत बनाता है।

  • Image placeholder

    shubham garg

    जुलाई 18, 2024 AT 09:43

    बहुत बढ़िया जानकारी।

  • Image placeholder

    LEO MOTTA ESCRITOR

    जुलाई 18, 2024 AT 11:06

    मुहर्रम के समय दान देना न केवल धार्मिक कर्तव्य है, बल्कि यह समाज में सामुदायिक सहयोग की भावना को भी प्रज्वलित करता है, इसलिए हम सभी को इस पर ध्यान देना चाहिए।

  • Image placeholder

    Sonia Singh

    जुलाई 18, 2024 AT 12:30

    इन परम्पराओं को समझकर हम अपने आप को और बेहतर बना सकते हैं, धन्यवाद इस लेख के लिए।

  • Image placeholder

    Ashutosh Bilange

    जुलाई 18, 2024 AT 13:53

    यार यार ताज़िया बना के जज्बा दिखाते हैं लेकिन फुलरेंडर का टैम्परेचर देख के होश किधर गया था भाई! एकदम झकास मस्त वाइब था, पर थोड़ी तो ब्रीफ़िंग होनी चाहिए थी।

  • Image placeholder

    Kaushal Skngh

    जुलाई 18, 2024 AT 15:16

    इतना लंबा लेख देख कर मेरा दिमाग घुमा गया, बस छोटा सा पॉइंट चाहिए था।

  • Image placeholder

    Harshit Gupta

    जुलाई 18, 2024 AT 16:40

    ऐसे बहुतेरे धार्मिक रिवाजों के पीछे छुपा सच केवल वही जानता है जो इतिहास की गहरी तह तक गया है, बाकी सब तो बस दिखावे की परतें हैं, और हमें इन पर सवाल उठाते रहना चाहिए।

  • Image placeholder

    HarDeep Randhawa

    जुलाई 18, 2024 AT 18:03

    वाह, मुहर्रम में ताज़िया बनाना, शोक करना, दान देना-ये सब, कितनी अद्भुत परम्पराएँ हैं, जो हमें एक साथ लाती हैं, एकता, सहानुभूति, और सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा देती हैं, बिल्कुल सही!;

  • Image placeholder

    Nivedita Shukla

    जुलाई 18, 2024 AT 19:26

    एक ओर जहाँ ताज़िया की रंगीन चमक दिल को लुभाती है, वहीं दूसरी ओर शोक की गहनता मन को छू लेती है-यहाँ तक कि यदि हम इन दोनों को मिलाकर देखेंगे, तो जीवन के दो पहलुओं का मिश्रण स्पष्ट रूप से उभरेगा, न कि केवल परम्पराओं के रूप में, बल्कि मानव अस्तित्व की गहनतम अनुभूतियों के रूप में भी।

  • Image placeholder

    Rahul Chavhan

    जुलाई 18, 2024 AT 20:50

    सभी को मुहर्रम की बधाई, और इस महीने की परम्पराओं को सम्मान के साथ निभाएँ।

एक टिप्पणी लिखें