गोवर्धन पूजा 2024: जानें सही तारीख और क्यों मनाई जाती है दीवाली के बाद

नव॰, 1 2024

गोवर्धन पूजा का ऐतिहासिक महत्व

गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है, हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह त्योहार भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इंद्र देव की अनुचित वर्षा से ब्रिज वासियों की रक्षा करने की कथा से जुड़ा हुआ है। ब्रिज भूमि पर जब इंद्र देव के क्रोधित होने पर अत्यधिक वर्षा होने लगी थी, तब भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था। इससे ब्रिज निवासी और उनके पशु-पक्षी सुरक्षित हो पाए थे। इस चमत्कार ने इंद्र देव को अपना अहंकार छोड़ने पर विवश कर दिया और तब से गोवर्धन पूजा का आरंभ हुआ।

2024 के गोवर्धन पूजा की सही तिथि और समय

गोवर्धन पूजा 2024 शनिवार, 2 नवंबर को मनाई जाएगी। द्रिक पंचांग के अनुसार, प्रतिपदा तिथि 1 नवंबर की शाम 6:16 बजे से प्रारंभ होकर 2 नवंबर की रात 8:21 बजे समाप्त होगी। इस पावन अवसर के लिए प्रातःकालीन मुहूर्त 6:14 AM से 8:33 AM तक है, जबकि सांयकालीन मुहूर्त 3:33 PM से 5:53 PM तक है। यह समय पूजा करने के लिए शुभ कहलाता है।

पूजा की विधि और रीति-रिवाज

गोवर्धन पूजा के दिन, घर के प्रवेशद्वार पर गोबर से गोवर्धन पर्वत का चित्र बनाया जाता है। इसके बाद उसकी पूजा शुरू होती है। लोग इस दिन गायों की पूजा करते हैं और गायों को स्वादिष्ट भोजन खिलाते हैं। पर्वत और गायों को सुंदर फूलों की माला और सजावट से सजाया जाता है। इस दिन गोवर्धन पर्वत की कथा और भगवान कृष्ण के चमत्कारों का गायन किया जाता है।

गोवर्धन पूजा का सांस्कृतिक महत्व

गोवर्धन पूजा केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में कृषक वर्ग के महत्व को भी उजागर करती है। गायों की पूजा और उनके महत्व को रेखांकित करते हुए यह त्योहार बताता है कि हमारे जीवन यापन के लिए प्राकृतिक संसाधनों और जीव जंतु का संरक्षण कितना अनिवार्य है।

आज की जरूरत और गोवर्धन पूजा

आज के वैश्विक परिदृश्य में जब पर्यावरणीय संकट लगातार बढ़ रहा है, इस त्योहार का महत्व और भी बढ़ जाता है। यह हमें प्रकृति की रक्षा और उसके प्रति संवेदनशीलता रखने का संदेश देता है। गोवर्धन पूजा के माध्यम से हमें अपने पर्यावरण को संरक्षित रखने की प्रेरणा लेने की आवश्यकता है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इसका लाभ उठा सकें।

समापन

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आखिरकार, गोवर्धन पूजा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि हमारे समाज में एक महत्वपूर्ण संदेश भी लाती है। यह त्योहार हमें भगवान कृष्ण की अहिंसा और दया की प्रतिमूर्ति के रूप में उनके छोटे-से उदाहरण से जीवन में बड़ी शिक्षा देने की कोशिश करता है। यह पूजा हमें सिखाती है कि हमें हमेशा अहंकार से दूर रहना चाहिए और प्रकृति की रक्षा के लिए समर्पित रहना चाहिए। गोवर्धन पूजा को उत्साहपूर्वक और सही तरीके से मनाना हमें अपने पर्यावरण और सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति जागरूक करता है।

14 टिप्पणि

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    Shritam Mohanty

    नवंबर 1, 2024 AT 21:48

    ये सब तो बस सरकारी जाल है, कोई असली पूजा नहीं।

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    Anuj Panchal

    नवंबर 2, 2024 AT 20:36

    गोवर्धन पूजा के सामाजिक-परिस्थितिक वैधता को एनालिटिकल फ्रेमवर्क से मूल्यांकन करते हुए, हमें इंटेग्रेटेड सिस्टम थ्योरी को लागू करना चाहिए; इससे निडर संरचनात्मक अंतर्दृष्टि मिलती है जो पवित्रकालीन रिवाजों को मेटा-डेटा के रूप में रीफ़्रेम करती है।

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    Prakashchander Bhatt

    नवंबर 3, 2024 AT 19:40

    आइए हम इस अवसर को मिलजुल कर मनाएँ और प्रकृति की रक्षा का संकल्प लें।

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    Mala Strahle

    नवंबर 4, 2024 AT 19:00

    गोवर्धन पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि हमारे सांस्कृतिक स्मृति का प्रतिबिंब है।
    इतिहास के पन्नों में जब हम इस पर्व को देखते हैं, तो पता चलता है कि यह कृषि समाज की जीवंतता को दर्शाता है।
    किसान और पशुपालक की जीवनधारा को सम्मानित करने के लिए ही यह उत्सव उत्पन्न हुआ था।
    भौतिकवादी दृष्टिकोण से देखें तो यह एक सामुदायिक सहयोग का मॉडल है जो सामाजिक स्थिरता बनाता है।
    भौगोलिक रूप से ब्रजभूमि में वर्षा के अत्यधिक प्रवाह को रोकने के लिए कृष्ण ने गोवर्धन ऊँचा उठाया, यह कथा पर्यावरणीय संतुलन की शिक्षा देती है।
    आज की जलवायु आपदा के संदर्भ में यह संदेश और भी प्रासंगिक हो गया है।
    विज्ञान के शब्दों में इसे जलवायु नियमन का पारंपरिक स्वरूप कहा जा सकता है।
    परंतु यह केवल विज्ञान नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जुड़ाव भी है जो मनुष्य को प्रकृति से बांधता है।
    इस दिन गायों को सम्मान देना, उनकी पोषण आवश्यकता को समझना हमारे सभ्य समाज की गुणवत्ता को दर्शाता है।
    गायें न केवल दूध देती हैं, बल्कि जैविक उर्वरक भी, जो कृषि उत्पादन को सुदृढ़ बनाता है।
    समाज में यदि हम इस मूलभूत संबंध को भूल जाएँ तो आर्थिक तथा पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न होगा।
    इसलिए गोवर्धन पूजा का आयोजन हमें परस्पर निर्भरता की द्वंद्वात्मक समझ देता है।
    भविष्य की पीढ़ियों को यह स्मरण कराना आवश्यक है कि प्राचीन ज्ञान को आधुनिक प्रथाओं के साथ समायोजित किया जा सकता है।
    ऐसे समारोहों में भाग लेकर हम अपने भीतर के नैतिक दायित्व को भी जागरूक कर सकते हैं।
    धर्म, संस्कृति और पर्यावरण की यह त्रिकोणीय अभिसमिति हमें एकीकृत लक्ष्य की ओर ले जाती है।
    अंत में, इस पूजा को मनाते हुए हमें अपने हृदय में सच्ची करुणा और संरक्षण की भावना को संचित करना चाहिए।

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    shubham garg

    नवंबर 5, 2024 AT 18:20

    चलो भाई लोग, इस बार हमें मिलकर तैयारियों में हाथ बंटाना चाहिए!

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    LEO MOTTA ESCRITOR

    नवंबर 6, 2024 AT 17:40

    बिलकुल सही कहा, हमें एकजुट होकर सभी की मदद करनी चाहिए।

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    Sonia Singh

    नवंबर 7, 2024 AT 17:00

    आपका विस्तृत विश्लेषण बहुत ज्ञानवर्धक है, धन्यवाद!

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    Ashutosh Bilange

    नवंबर 8, 2024 AT 16:20

    यार, इस पूजा में हर कोई झूठ बोल रहा है, असली मर्म तो बस रिवाजों के पीछे छिपा है!

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    Kaushal Skngh

    नवंबर 9, 2024 AT 15:40

    सच में, बहुत बकवास है, बस बड़े लोगों की कहानी सुन रहे हैं।

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    Harshit Gupta

    नवंबर 10, 2024 AT 15:00

    देश के लोगों को इस त्यौहार को सही ढंग से अपनाना चाहिए, विदेशी प्रभाव नहीं लाना चाहिए!

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    HarDeep Randhawa

    नवंबर 11, 2024 AT 14:20

    वाकई!!! यह बात बिल्कुल सही है!!! परन्तु हमें थोड़ा समझदारी भी दिखानी चाहिए!!!

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    Nivedita Shukla

    नवंबर 12, 2024 AT 13:40

    जब हम गोवर्धन की कथा सुनते हैं, तो मानो समय के परदे में छिपी एक गुप्त भावना जाग उठती है; यह भावना हमें अस्तित्व की गहराईयों में ले जाती है, फिर भी हम अक्सर इसकी सराहना नहीं कर पाते।

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    Rahul Chavhan

    नवंबर 13, 2024 AT 13:00

    सच में, इस बात से मुझे भी अपने अंदर की कुछ नई सोच झलकती है, धन्यवाद!

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    Joseph Prakash

    नवंबर 14, 2024 AT 12:20

    बहुत बढ़िया पोस्ट 🙌 धन्यवाद

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